Tuesday, January 19, 2021

Shubhashitani



आशाया:किरणा:स्युर्वा सूर्यनारायणस्य च। जीवनतिमिरं गाढं नाशयन्ति न संशय:।। આશા ના કિરણો હોય કે પછી ભગવાન સૂર્યનારાયણ ના હોય પણ જીવનના ગાઢ અંધકાર નો નાશ કરે છે.જેમા શંકા નથી. नयस्य विनयो मूलं विनयः शास्त्रनिश्चयः । विनयो हीन्द्रियजयः तद्युक्तः शास्त्रमृच्छति ।। विनयभाव नीति का मूल है, विनयभाव को शास्त्रों के द्वारा प्रतिपादित किया गया है । विनयभाव ही इन्द्रिय जय में साधक है, विनय से युक्त पुरूष ही शास्त्रों का अध्ययन कर पाता है ।।


जीवने सर्वतोऽजिह्मं किमस्ति कठिनं क्षति:। स्वकृते स्वीकृति र्जिह्मा सरलोक्ति:परै:कृते।। જીવનમાં સૌથી વધારે સહેલું અને અઘરું શું છે? "ભૂલ "બીજા કરે ત્યારે કહેવું "સહેલું "છે.જ્યારે પોતાના થી થાય ત્યારે સ્વીકારવું "અઘરું" છે. दानेन तुल्यो विधिरास्ति नान्यो लोभोच नान्योस्ति रिपुः पृथिव्यां। विभूषणं शीलसमं च नान्यत् सन्तोषतुल्यं धनमस्ति नान्यत्॥ दान के समान अन्य कोई अच्छा कर्म नहीं है, लोभ के समान इस पृथ्वी पर कोई अन्य शत्रु नहीं है, शील के समान कोई गहना नहीं है और सन्तोष के समान कोई धन नहीं है।

ऐक्यं बलं समाजस्य तदभावे स दुर्बल: l तस्मात ऐक्यं प्रशंसन्ति दॄढं राष्ट्र हितैषिण:।। भावार्थ -- एकता ही समाज का बल है । जिस समाज में एकता का अभाव होता है, वह समाज दुर्बल होता है । इसलिए राष्ट्रहित की सोच रखने वाले सदैव एकता को बढ़ावा देते हैं । (संघे शक्ति कलौ युगे)


कदाचित्दृढहस्तेन गृहीताङ्गुलिर्मुच्यते। सम्बन्धा:परिरक्ष्यन्ते हृदयेन बलेन नो।। ક્યારેક મજબૂત હાથ થી પકડેલી આંગળી પણ છૂટી જાય છે.કારણ સમ્બન્ધો બળ થી નહિ દિલથી નિભાવવામાં આવે છે. कलहान्तानि हम्र्याणि कुवाक्यानां च सौहृदम् | कुराजान्तानि राष्ट्राणि कुकर्मांन्तम् यशो नॄणाम् || झगडों से परिवार टूट जाते है | गलत शब्द के प्रयोग करने से दोस्ती टूट जाती है । बुरे शासकों के कारण राष्ट्र का नाश होता है| बुरे काम करने से यश दूर भागता है।

सुखस्य नास्ति सूचि:का दु:खस्य नास्ति चौषधम्। स्नेहस्य पोषणं संवे-दनावायव एव च।। यथाकालमवाप्यन्ते सम्बन्धा यदि चेत् समे। रक्ष्यन्ते सर्वदा तेऽत्र संदेह:कोऽपि नास्ति च।। સુખ નાં કોઈ ઇન્જેક્શન નથી,દુ:ખ ની કોઈ દવા નથી. પરંતુ સ્નેહ નું વિટામિન અને લાગણી નું ઓક્સિજન જો સમયસર મળે તો અહિયાં બધા સંબંધો બચી જાય છે.જેમા કોઈ શંકા નથી. कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः। कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ॥ काल या समय सब प्राणियों को पचा जाता या निगल लेता है। काल ही प्रजाओं को विनष्ट करता है। काल सदा जागृत रहता है। वह कभी सोता नहीं है। काल का अतिक्रमण असम्भव है।


सरसात् सरलार्थं प्र-यतनीयं सुमानवै:। सरसो नयनं यावत् गच्छति सरलो मन:।। સરસ બનવા કરતા સારામાણસે સરળ બનવાનો પ્રયત્ન કરવો જોઈએ.કારણકે સરસ માત્ર આખો સુધી પહોંચે છે.જ્યારે સરળ હૃદય સુધી પહોંચે છે. परस्य पीडया लब्धं धर्मस्योल्लंघनेन च । आत्मावमानसंप्राप्तं न धनं तत् सुखाय वै ।। महाभारत दुसरोंको दु:ख देकर , धर्मका उल्लंघन करकर या स्वयं का अपमान सहकर मिले हुए धन से सुख नही प्राप्त होता ।

वदन्ति मानवा:वित्तं किञ्चित् कुर्यां समाव्रजेत्। वित्तं वदति यत् किञ्चित् कुर्वागच्छेयमादरात्।। માણસો કહે છે કે "પૈસો આવે તો કાંઈક કરી બતાવું"અને પૈસો કહે છે કે"તુ કાંઈક કર તો હું આદરથી આવું" अन्नदानं परं दानं विद्यादानमतः परम्। अन्नेन क्षणिका तृप्तिः यावज्जीवं च विद्यया॥ अन्न का दान परम दान है और विद्या का दान भी परम दान है किन्तु दान में अन्न प्राप्त करने से कुछ क्षणों के लिए ही तृप्ति प्राप्त होती है जबकि दान में विद्या प्राप्त करने वाला (अपनी विद्या से आजीविका कमा कर) जीवनपर्यन्त तृप्ति प्राप्त करता है ।.

वरमल्पबलं सारं न कुर्यान्मुण्डमण्डलीम्। कुर्यादसारभङ्गौ हि सारभङ्गमपि स्फुटम्।। (हितोपदेश - ३/८९) अर्थात् 👉 सेना चाहे थोड़ी ही हो, किन्तु उनके सैनिकों के पूर्ण निर्भीक तथा बहादुर होना चाहिए। केवल मुंड गिनाना उचित नहीं है, क्योंकि कायरों के हिम्मत हार जाने पर वीर सैनिक भी हताश हो जाते हैं।


सोपानं जायते घृष्टा-देकस्मात् प्रस्तरात् सदा। शिल्पीकृत:स एवात्र भवति परमेश्वर:।। ઘસાયેલા પત્થર માંથી પગથીયું બને છે.અને ઘડાયેલા પત્થર માંથી પરમેશ્વર બને છે. यथा छायातपो नित्यं सुसंबद्धौ निरन्तरम्। तथा कर्म च कर्ता च संबद्धावात्मकर्मभिः ।। जैसे प्रकाश और छाया इन का निरंतर नित्यसंबंध होता हैं, कर्म करते समय वैसे ही कर्म और कर्ता इन का उस परिस्थिति में नित्य सबंध होता हैं ।।


न विप्रपादोदक पंकिलानि न वेदशास्त्रध्वनिगर्जितानि। स्वाहास्वधाकारध्वनिवर्जितानि श्मशानतुल्यानि गृहाणितानि ॥ 👉 चाणक्य नीति अध्याय -१२(१०) अर्थात्- जिस घर में विप्र के पाँवों को धुलाने वाले पानी से कीचड़ न हुआ हो, जहाँ वेद आदि शास्त्रों के पाठ स्वर नहीं गूंजे हों, जो घर स्वाहा की ध्वनि से रहित हो, वह घर निश्चय ही शमशान भूमि के समान है।


धावत:सर्वचित्तेषु सत्यासत्यात्मकौ हयौ। यो हयोऽधिकमाहारं लभते स जयी भवेत्।। બધા નાં મનમાં બે ઘોડા દોડે છે, એક પોઝિટિવ અને બીજો નેગેટિવ,આ બન્ને માંથી જે ઘોડો વધારે ખોરાક મેળવે તે જીતી જાય છે. तेजः क्षमा धृतिः शौचोमद्रोहो नातिमानिता । भवन्ति सम्पदं दैविनभिजातस्य भारत ।। ( श्री मद्भग्वद्गीता - १६/३ ) हे भारत …! तेज, क्षमा, धैर्य, बाह्य और आंतरिक शुद्धि, किसी के प्रति शत्रुता न होना, अपने में ज्ञान और पुज्यता का अभिमान न होना ये सब दैवि संपदा को लेकर जन्मे हुए मनुष्य के लक्षण है ।



गुणिजनै: समं स्थित्वा सामान्यो गौरवं व्रजेत्। पुष्पहारस्थसूत्रं हि मस्तकस्थानमाप्नुयात्।। ગુણીજનો ની સાથે રહીને સામાન્ય માણસ પણ ગૌરવ પ્રાપ્ત કરી શકે છે.જેમ પુષ્પોના હારમાં રહેલો દોરો મસ્તક ના ઉપરનું સ્થાન પ્રાપ્ત કરે છે. प्राणाघातान्निवृत्तिः युवतिजनकथामूकभावः परेषाम् । तृष्णास्रोतोविभङ्गो गुरुषु च *विनयः सर्वभूतानुकम्पा सामान्यः सर्वशास्त्रेष्वनुपहतविधिः श्रेयसामेष पन्थाः ॥ जीवों को चोट पहुँचाने से बचना, दूसरों का धन हरण करने की इच्छा न रखना, हमेशा सत्य बोलना, समयानुसार श्रद्धा से दान करना, परायी स्त्री की चर्चा करने और सुनाने से दूर रहना, अपनी इच्छाओं को अपने वश में करना, गुरुजनों का आदर करना और सब जीवों पर दया करना,- हम सब के लिए सभी शाश्त्रों के मतानुसार कल्याण तथा प्रसन्नता का मार्ग है।



द्वौ जनौ निष्फलौ स्यातां शोचत्येक:करोति न। जीवनेऽन्य:करोत्येव शोचति न कदाचन।। જીવનમાં બે વ્યક્તિ અસફળ બને છે.એક પહેલા વિચારે છે પણ કરતો નથી.બીજો કરે છે પણ વિચારતો નથી. प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम् । उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम् ।। ( श्रीमद् भग्वद्गीता - ६/२७ ) जिस समय योगी का मन पूरी तरह शान्त हो जाता है, तब निश्चय ही इस योगी को राजसिक विकार से रहित, निर्मल, ब्रह्मभाव को प्राप्त हुए आत्मा से स्वभावतः प्रकट हुग्रा उच्चतम सुख प्राप्त होता है ।



विपत्तिसमये ज्ञानं यो दत्ते नो सहायताम्। तस्य त्यागो विधातव्य:शीघ्रमेव सुखी भवेत्।। મુશ્કેલી નાં સમયમાં જે સાથ આપવાની જગ્યાએ જ્ઞાન આપે તેનો સાથ ઝડપથી છોડી દો સુખી થશો. आयुष: क्षण एकोपि सर्वरत्नैर्न लभ्यते । नीयते तद् वॄथा येन प्रमाद: सुमहानहो ॥ सब रत्न देने पर भी जीवन का एक क्षण भी वापास नही मिलता ।ऐसे जीवन के क्षण जो निर्थक ही खर्च कर रहे है वे कितनी बडी गलती कर रहे है ।



रोदिति कर्गजं नैव रोदयेत् परिणामकम्। प्रेमपत्रं भवेत् वान्य -दस्मद्स्वास्थ्यपरीक्षणम्।। કાગળ ક્યારેય રડતો નથી પણ રડાવી દે છે.પછી એ પ્રેમપત્ર હોય,કે પરિણામ પત્રક,કે આપણો મેડિકલ રિપોર્ટ दुर्गुणानां स्वकीयानां कृत्वा गवेषणं मुदा। तत्दूरीकरणं सम्यक् संसारसेवनं महत्।। भावार्थ: પોતાના દુર્ગુણો ને શોધી ને તેને સારી રીતે દૂર કરવા એજ સંસાર ની સૌથી મોટી સેવા છે.

विदन्ति जन्तवो हन्त
पच्यमानस्य नात्मनः।
अवस्थां कालसूदेन
कृतां तां तां क्षणे-क्षणे।।

(राजतरङ्गिणी ४/३८५)

अर्थात् 👉 हन्त! कालरूप पाचक (पकाने वाला) प्रतिक्षण प्रणियों के शरीर में अवस्था परिवर्तन करता रहता है, फिर भी उनके समझ में कुछ नहीं आता है। कितना आश्चर्यजनक है?


गङ्गा गोमदि गोपति गन्पतिर् गोविन्द गौवर्धनो | 
गीता गोमय गोरज गिरिसुता गङ्गाधरो गौतम: || 
गायत्री गरुडो गदाधर गया, गाम्भीर्य गोदावरी |
गान्धर्वं गुह गोप् गोकुल धरो कुर्यात सदा मङ्गलम् ||



हस्तो दान विवर्जितो श्रुतिपटो सार श्रुति द्रोहिणो नेत्रे साधुविलोकनेन रहिते पादौ न तीर्थं गतो | अन्यायार्जित वित्तपूर्णमुदरं गर्वेन तुङ्गं शीरं रे रे जंबुक मुञ्च मुञ्च सहसा नीचस्य निन्द्यं वपुः ||

हे लोमडी (जैसी मनुष्य वृत्ति) ! इस नीच इन्सान का निंद्य शरीर तू छोड दे, (क्यों कि) उसके हाथ दान विवर्जित हैं, कान सार और श्रुति के द्रोही है, आँखों ने अच्छा देखा नहीं, पैर तीर्थ को गये नहीं, पेट अन्याय से प्राप्त धन से भरा हुआ है, (और इसके बावजुद) सिर गर्व से उँचा रहता है !"
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धन का घमंड अच्छा नहीं ! यदि समाज़ या देश हित में कुछ नहीं किया तो आपकी सम्पन्नता व्यर्थ है ।
छोटा ही सही पर दान अवश्य करें ।


कामधेनुगुण विद्या ह्यकाले फलदायिनी। प्रवासे मातृसदृशी विद्या गुप्तं धनं स्मृतम्।। 

विद्या प्राप्त करना कामधेनु समान है,जो हर मौसम में फलदायी होती है,विद्या (ज्ञान)प्रवास में (विदेश)में भी माता के समान रक्षा करती है, इसलिए  विद्या को गुप्त धन कहा गया है ।।  

 

अनारोग्यमनायुष्यमस्वर्ग्यं चातिभोजनम्| अपुण्यं लोकविद्विष्टम्, तस्मात्तत् परिवर्जयेत्|| 

सीमा से अधिक खाने से स्वास्थ्य बिगड़ जाता है और आयु घट जाती है| यह कष्टदायक, पापकर्म तथा संसार से द्वेषकारी है| अत: अधिक भोजन नहीं करना चाहिए|

विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् । पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ।।

अर्थात् : विद्या यानि ज्ञान हमें विनम्रता प्रादान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और  योग्यता से हमें धन प्राप्त होता है जिससे हम धर्म के कार्य करते हैं और हमे सुख सुख मिलता है

That is, knowledge means knowledge gives us humility, humility brings merit, and merit brings us wealth, through which we do the work of religion and we get happiness.


अनन्तशास्त्रं बहु वेदितव्यम्, अल्पश्च कालो बहवश्च विघ्ना:|

यत्सारभूतं तदुपासितव्यम्, हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमिश्रम्||

जानने योग्य वाङ्मय बहुत अधिक है और समय बहुत अल्प है तथा विघ्न अनेक हैं| इसलिए जो अपने लिए महत्वपूर्ण हो, उसी साहित्य का अध्ययन करना चाहिए, जैसे पानी में मिले दूध में से हंस दूध को ग्रहण कर लेता है|



स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा ! सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् !!

अर्थ : किसी व्यक्ति को आप चाहे कितनी ही सलाह दे दो किन्तु उसका मूल स्वभाव नहीं बदलता ठीक उसी तरह जैसे ठन्डे पानी को उबालने पर तो वह गर्म हो जाता है लेकिन बाद में वह पुनः ठंडा हो जाता है.


पुस्तकस्थातु या विद्या , परहस्त गतं  धनम् । कार्य कार्ये समुत्पन्ने  ,न सा विद्या,  न तद् धनम् ।।

પુસ્તક માં રહેલી વિદ્યા  અને બીજા ને આપેલું ધન જ્યારે આપણને જરુર પડે ત્યારે કામ લાગતું નથી. 

ગરજ ગાંઠે અને વિદ્યા પાઠે.

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स्वभावं न जहात्येव साधुरापद्गतोऽपि सन् । कर्पूरः पावकस्पृष्टः सौरभं लभतेतराम् ॥

भावार्थ: सज्जन पुरुष विपत्ति पड़ने पर भी अपने सुस्वभाव को नहीं त्यागते जिस प्रकार आग का स्पर्श होने से जलकर नष्ट होने पर भी कपूर सुगन्ध ही प्रदान करता हैं ।

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः । न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥

अर्थात् : कोई भी काम कड़ी मेहनत से ही पूरा होता है सिर्फ सोचने भर से नहीं| कभी भी सोते हुए शेर के मुंह में हिरण खुद नहीं आ जाता|

Meaning, any work is accomplished by hard work, not just by thinking.  Never a deer comes  in sleeping lions  mouth.



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आशाया:किरणा:स्युर्वा सूर्यनारायणस्य च। जीवनतिमिरं गाढं नाशयन्ति न संशय:।। આશા ના કિરણો હોય કે પછી ભગવાન સૂર્યનારાયણ ના હોય પણ જીવનના ગાઢ અંધ...