Wednesday, May 20, 2020

Shloka List

भूमिः कीर्तिः यशो लक्ष्मीः
        पुरुषं प्रार्थयन्ति हि ।
सत्यं समनुवर्तन्ते
        सत्यमेव भजेत् ततः।।

 *भावार्थ :- भूमि, कीर्ति, यश और लक्ष्मी, सत्य का अनुसरण करने वाले पुरुष की प्रार्थना करते हैं । सदैव सत्य का ही अनुसरण करना चाहिए ।

पुनर्वित्तं पुनर्मित्रं पुनर्भार्या पुनर्मही।
एतत्सर्वं पुनर्लभ्यं न शरीरं पुनः पुनः।।
Chanakya Neeti 14.3

आप दौलत, मित्र, पत्नी और राज्य गंवा कर वापस पा सकते है लेकिन यदि आप अपनी काया गंवा देते है तो वापस नहीं मिलेगी.

Wealth, a friend, a wife, and a kingdom may be regained; but this body when lost may never be acquired again.


KarpurGauram Karunavataram.......an ancient sanskrit shloka  is presented by 17 musicians from 9 different countries,in lockdown period, giving message of peace and hope!!!!! 👇

| સત્ય સનાતન દર્શન ||
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् । नासत्यं च प्रियं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः ॥
 भावार्थ :
सत्य और प्रिय बोलना चाहिए; पर अप्रिय सत्य नहीं बोलना और प्रिय असत्य भी नहीं बोलना यह सनातन धर्म है ।
શુભ પ્રભાત


• हे प्रभु ! हमारा कल्याण हो ! •
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स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।

- सामवेद उ. : 9.3.9.3

• शब्दार्थ :

(वृद्धश्रवाः इन्द्रः) सबसे बढ़कर यश वाला व सुनने वाला परमेश्वर

(नः स्वस्ति दधातु) हमारे लिए कल्याण को धारण करे।

(विश्ववेदाः पूषा) सबको जानने और पालन करने वाला प्रभु

(नः स्वस्ति) हमारे लिये सुख को धारण करे।

(अरिष्टनेमिः) अरिष्ट जो दुःख उसको

(नेमिः) वज्र के तुल्य काटने वाला ईश्वर

(तार्क्ष्य:) जानने व प्राप्त होने योग्य

(नः स्वस्ति) हमारे लिये कल्याण को धारण करें।

(बृहस्पतिः) बड़े-बड़े सूर्य, चन्द्र, शुक्र, बुध, मंगल, आदि ग्रह, उपग्रह, लोक, लोकान्तरों का धारक, पालक, मालिक, पोषक, प्रभु वेद चतुष्टयरूपी बड़ी वाणी का उत्पादक, रक्षक व स्वामी

(नः स्वस्ति) हम सब के लिए कल्याण को धारण करे।

• भावार्थ : सबसे बढ़कर यशस्वी, सर्वज्ञ, सबका पालक इन्द्र, भक्तों के दु:खों को काटने वाला, जानने योग्य, सूर्यादि सब बडे-बडे पदार्थों का जनक और हम सबके कल्याण के लिए वेदों का उत्पादक परमात्मा हम सबका कल्याण करे।

कुसुमं वर्णसंपन्नं गन्धहीनं न शोभते।
न शोभते क्रियाहीनं मधुरं वचनं तथा॥

जिस प्रकार से गन्धहीन होने पर सुन्दर रंगों से सम्पन्न पुष्प शोभा नहीं देता, उसी प्रकार से अकर्मण्य होने पर मधुरभाषी व्यक्ति भी शोभा नहीं देता।



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 -सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्म सदाश्रितः । सत्यमूलानि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम् ॥
 भावार्थ :- सत्य ही संसार में ईश्वर है; धर्म भी सत्य के ही आश्रित है; सत्य ही समस्त भव - विभव का मूल है;  सत्य से बढ़कर और कुछ नहीं है ।।

 उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम्।
सोत्साहस्य च लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्॥
जिस व्यक्ति के भीतर उत्साह होता है वह बहुत बलवान होता है। उत्साह से बढ़कर कोई अन्य बल नहीं है, उत्साह ही परम् बल है। उत्साही व्यक्ति के लिए इस संसार में कुछ भी वस्तु दुर्लभ नहीं है।


तक्षकस्य विषं दन्ते मक्षिकायास्तु मस्तके ।
वृश्चिकस्य विषं पुच्छे सर्वांऽगे दुर्जने विषम्।।   
तक्षक(सर्प)के दांत में जहर होता है, मक्खी के मस्तक में जहर होता है, बिच्छु के पुच्छ में जहर होता है, किन्तु दुर्जन पुरुष के पूरे शरीर में जहर होता है ।।


सम्पूर्ण कुंभो न करोति शब्दं अर्धोघटो घोषमुपैति नूनम्।
विद्वान कुलीनो न करोति गर्वं गुणैर्विहीना बहु जल्पयंति॥
जिस प्रकार से आधा भरा हुआ घड़ा अधिक आवाज करता है पर पूरा भरा हुआ घड़ा जरा भी आवाज नहीं करता उसी प्रकार से विद्वान अपनी विद्वता पर घमण्ड नहीं करते जबकि गुणविहीन लोग स्वयं को गुणी सिद्ध करने में लगे रहते हैं।


बुद्धया भयं प्रणुदति तपसा विन्दते महत् । 
गुरु शुश्रूषया ज्ञानं शान्ति  योगेन  विन्दति ।।
विदुर नीति   
मनुष्य बुद्धि से भयको दूर करता है, तपके द्वारा तेज प्राप्त करता है, गुरु की सेवा करके ज्ञानको प्राप्त कर सकता है, और योग के द्वारा शांति को प्राप्त करता है ।।

मूर्खा यत्र न पूज्यते धान्यं यत्र सुसंचितम्।
दम्पत्यो कलहो नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागता॥

जहाँ पर मूर्खो की पूजा नहीं होती (अर्थात् उनकी सलाह नहीं मानी जाती), धान्य को भलीभाँति संचित करके रखा जाता है और पति पत्नी के मध्य कलह नहीं होता वहाँ लक्ष्मी स्वयं आ जाती हैं।


विद्या नाम नरस्य कीर्तिर्तुला भाग्यक्षये चाश्रयो।
धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा॥
सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम्।
तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु॥
विद्या मनुष्य की अनुपम कीर्ति है, भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है, विद्या कामधेनु है, विरह में रति समान है, विद्या ही तीसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल की महिमा है, बिना रत्न का आभूषण है; इस लिए अन्य सब विषयों को छोडकर विद्या का अधिकारी बन!!.



कलहान्तानि हम्र्याणि कुवाक्यानां च सौहृदम् |
कुराजान्तानि राष्ट्राणि कुकर्मांन्तम् यशो नॄणाम् ||
झगडों से परिवार टूट जाते है | गलत शब्द के प्रयोग करने से दोस्ती टूट जाती है । बुरे शासकों के कारण राष्ट्र का नाश होता है| बुरे काम करने से यश दूर भागता है।



रुद्रो मुण्डधरो भुजंगसहितो गौरी तु सद्भूषणा।
स्कन्दः शम्भुसुतौ षडाननयुत स्तुण्डी च लम्बोदरः ।।
सिंहक्रेलिममूषकं च बृभ स्तेषांनिजं वाहन -।
मित्थं शम्भुगृहे विभिन्नमतिषु  चैक्यं सदा वर्तते ।।
भावार्थ -- भगवान् शंकर का वाहन बैल, पार्वतीजी का वाहन सिंह, पुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर, गणेशजी का वाहन मूषक एवं शिवजी के गले में सर्प है l इस प्रकार से सभी के वाहन एक दूसरे के जन्मजात शत्रु हैं एक दूसरे को भक्षण करने वाले हैं ।
पर धन्य है भगवान की महिमा या अनुशासन की सभी पशु होकर भी  वैर भाव को त्यागकर परस्पर मिलजुलकर रहते हैं ।


चिन्तायाश्च  चितायाश्च बिन्दुमात्रं विशिष्यते |
चिता दहति निर्जीवं चिन्ता दहति जीवनम् ||
ચિંતા અને ચિતા બંને માં એક બિંદુ માત્ર નો ફર્ક છે, પરંતુ ચિતા નિર્જિવ શરીર ને બાળે છે, જયારે ચિંતા જીવતા જીવ બાળે છે.


पद्माकरं दिनकरो विकचीकरोति
चन्द्र विकासयति कैरवचक्रवालम्।
नाभ्यर्थितो जलधरोऽपि जलं ददाति
सन्तः स्वयं परहितेषु कृताभियोगाः।।
सूर्य कमलों के समूह को प्रफुल्लित करता है चंद्र कुमुदिनी के समूह को प्रफुल्लित करता है  और मेघ बिना मांगनेपर स्वयं जल देता है,  वैसे  सज्जन पुरुष  स्वयं ही परोपकार के लिए सदैव प्रयत्नरत (तत्पर)रहतें  है।।.


दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम् ।
मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रय: ॥
मनुष्य जन्म, मुक्ति की इच्छा तथा महापुरूषों का सहवास यह तीन चीजें परमेश्वर की कृपा पर निर्भर रहते है ।



स्वभावं न जहात्येव साधुरापद्गतोऽपि सन् |
कर्पूरः पावकस्पृष्टः सौरभं लभतेतराम् ||
सज्जन व्यक्ति अपना नैसर्गिक अच्छा स्वभाव किसी बडी आपदा में भी उसी  प्रकार नहीं छोड़ता हैं जिस प्रकार आग के संपर्क में भी आकर कपूर अपना मूल स्वाभाव(सुगंध) नहीं छोड़ता है, बल्कि और भी अधिक सुगंध फैलाता है।
स्वभावं न जहात्येव साधुरापद्गतोऽपि सन् |
कर्पूरः पावकस्पृष्टः सौरभं लभतेतराम् ||
सज्जन व्यक्ति अपना नैसर्गिक अच्छा स्वभाव किसी बडी आपदा में भी उसी  प्रकार नहीं छोड़ता हैं जिस प्रकार आग के संपर्क में भी आकर कपूर अपना मूल स्वाभाव(सुगंध) नहीं छोड़ता है, बल्कि और भी अधिक सुगंध फैलाता है।

 यदि सन्तं सेवति यद्यसन्तं तपस्विनं यदि वा स्तेनमेव।
वासो यथा रङ्गवशं प्रयाति तथा स तेषां वशमभ्युपैति।।
भावार्थ :- कपड़े को जिस रंग में रँगा जाए, उस पर वैसा ही रंग चढ़ जाता है, इसी प्रकार सज्जन के साथ रहने पर सज्जनता, चोर के साथ रहने पर चोरी तथा तपस्वी के साथ रहने पर तपश्चर्या का रंग चढ़ जाता है।


मूर्खा यत्र न पूज्यते धान्यं यत्र सुसञ्चितम् |
दंपत्यो कलहं नास्ति तत्र श्री: स्वयमागतः ||
જ્યાં મૂરખ ને સન્માન નથી, અનાજ સારી રીતે સચવાય છે. જ્યાં દંપતી માં ઝગડો થતો નથી, ત્યાં લક્ષ્મી પોતેજ આવી જાય છે.

कौर्मं संकोचमास्थाय प्रहारानपि मर्षयेत् ।
प्राप्ते काले च मतिमानुत्तिष्ठेत् कृष्णसर्पवत् ॥
कछुए की तरह अपने गात्र संकुचित करके प्रहारभी सहन करना, किन्तु बुध्दिमान मनुष्य को समय आने पर साँप की तरह डर दिखाना चाहिए ।

शनैः पन्थाः शनैः कन्था शनैः पर्वतमस्तके ।
शनैः विद्या शनैः वित्तं पञ्चैतानि शनैः शनैः ॥
रास्ता धीरे धीरे हीं कट जाता है। योगी बनने की साधना में भी समय लगता है। पर्वतारोहण करना या विद्या और धन प्राप्त करना ये भी समय से होनेवाली बातें हैं।
ધીમે ધીમે રસ્તો કપાય છે, ધીમે ધીમે યોગી બનાય છે, પર્વત ની ટોચ પર પણ ધીમે ધીમે જવાય છે, વિદ્યા ધીમે ધીમે મળે છે, ધન પણ ધીમે ધીમે મળે છે. આમ આ પાંચ ધીમે ધીમે મળે છે. 1.રસ્તો, 2.યોગી, 3. પર્વત ની ટોચ, 4. વિદ્યા, 5.ધન

अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद् गजभूषणम् ।
चातुर्यं भूषणं नार्या उद्योगो नर भूषणम् ।
तेज चाल घोड़े का अाभूषण है, मत्त चाल हाथी का अाभूषण है, चातुर्य नारी का अाभूषण है और उद्योग मे लगे रहना पुरुष का अभूषण है ।।

गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणो। बली बलं वेत्ति न वेत्ति निर्बल: ।
पिको वसन्तस्य गुणं न वायस: ।   करी च सिंहस्य बलं न मूषक: ॥
गुणी पुरुष ही दूसरे के गुण पहचानता है, गुणहीन पुरुष नही। बलवान पुरुष ही दूसरे का बल जानता है, बलहीन नही। वसन्त ऋतु आए तो उसे कोयल पहचानती है, कौआ नही। शेर के बल को हाथी पहचानता है, चूहा नही।

अज्ञ: सुखमाराध्य: सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञ:।
ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्माऽपि तं नरं न रञ्जयति।।
“અજ્ઞાનીને સહેલાઇથી સમજાવી શકાય, વિશેષ જાણકારને વધારે સહેલાઇથી સમજાવી શકાય. પરંતુ અલ્પજ્ઞાનને કારણે દોઢડાહ્યાને તો બ્રહ્મા પણ સમજાવી શકતા નથી”.

वित्तेन रक्ष्यते धर्मो  विध्या योगेन रक्ष्यते |
मृदुना रक्ष्यते भूप: स्तिस्त्त्रया रक्ष्यते गृहम् ||
ધન થી ધર્મની, યોગ થી વિદ્યાની, મૃદુતા થી રાજાની, અને સતી સ્ત્રી થી ઘર ની રક્ષા થાય છે.
esahitya
http://www.esahity.com/23092343238123512366234023812350.html


संस्कृत के बारे में रोचक तथ्य

1. मात्र 3,000 वर्ष पूर्व तक भारत में संस्कृत बोली जाती थी तभी तो ईसा से 500 वर्ष पूर्व पाणिणी ने दुनिया का पहला व्याकरण ग्रंथ लिखा था, जो संस्कृत का था। इसका नाम ‘अष्टाध्यायी’ है।

2. संस्कृत, विश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (ऋग्वेद) की भाषा है। इसलिये इसे विश्व की# प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है।

3. इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है।

4. संस्कृत ही एक मात्र साधन हैं जो क्रमशः अंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं।

5. संस्कृत अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है।

6. संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है संस्कृत एक संस्कृति है एक संस्कार है संस्कृत में विश्व का कल्याण है शांति है सहयोग है वसुदैव कुटुम्बकम् कि भावना है।

7. नासा का कहना है की 6th और 7th generation super computers संस्कृत भाषा पर आधारित होंगे।

8. संस्कृत विद्वानों के अनुसार सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां(Beams of light) निकलती हैं और ये चारों ओर से अलग-अलग निकलती हैं। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गईं। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने।

9. कहा जाता है कि अरबी भाषा को कंठ से और अंग्रेजी को केवल होंठों से ही बोला जाता है किंतु संस्कृत में वर्णमाला को स्वरों की आवाज के आधार पर कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अंतःस्थ और ऊष्म वर्गों में बांटा गया है।

10. संस्कृत उत्तराखंड की आधिकारिक राज्य(official state) भाषा है।

11.अरब आक्रमण से पहले संस्कृत भारत की राष्ट्रभाषा थी।

12. कर्नाटक के मट्टुर(Mattur) गाँव में आज भी लोग संस्कृत में ही बोलते हैं।

13. जर्मनी के 14 विश्वविद्यालय लोगों की भारी मांग पर संस्कृत (Sanskrit) की शिक्षा उपलब्ध करवा रहे हैं लेकिन आपूर्ति से ज्यादा मांग होने के कारन वहाँ की सरकार संस्कृत (Sanskrit) सीखने वालों को उचित शिक्षण व्यवस्था नहीं दे पा रही है।

14. हिन्दू युनिवर्सिटी के अनुसार संस्कृत में बात करने वाला मनुष्य बीपी, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि रोग से मुक्त हो जाएगा।

15. संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है। जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश के साथ सक्रिय हो जाता है।

16. यूनेस्को(UNESCO) ने भी मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की अपनी सूची में संस्कृत वैदिक जाप को जोड़ने का निर्णय लिया गया है। यूनेस्को(UNESCO) ने माना है कि संस्कृत भाषा में वैदिक जप मानव मन, शरीर और आत्मा पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

17. शोध से पाया गया है कि संस्कृत (Sanskrit) पढ़ने से स्मरण शक्ति(याददाश्त) बढ़ती है।

18. संस्कृत वाक्यों में शब्दों की किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी सम्भावना नहीं होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं। जैसे- अहं गृहं गच्छामि >या गच्छामि गृहं अहं दोनों ही ठीक हैं।

19. नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार जब वो अंतरिक्ष ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे तो उनके वाक्य उलट हो जाते थे। इस वजह से मैसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंने कई भाषाओं का प्रयोग किया लेकिन हर बार यही समस्या आई। आखिर में उन्होंने संस्कृत में मैसेज भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उलटे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं। जैसा के ऊपर बताया गया है।

20. संस्कृत भाषा में किसी भी शब्द के समानार्थी शब्दों की संख्या सर्वाधिक है. जैसे हाथी शब्द के लिए संस्कृत में १०० से अधिक समानार्थी शब्द हैं।

दूरस्था: पर्वता: रम्या: वेश्या: च मुखमण्डने ।
युध्यस्य तु कथा रम्या त्रीणि रम्याणि दूरत: ॥
पहाड दूर से बहुत अच्छे दिखते है । मुख विभुषित करने के बाद वैश्या भी अच्छी दिखती है । युद्ध की कहानिया सुनने को बहौत अच्छी लगती है । ये तिनो चिजे पर्याप्त अंतर रखने से ही अच्छी लगती है ।

कौशल्या सुप्रजा रामा पूर्वा संध्या प्रवर्तते ।
उत्तिष्ठ नर शार्दुल, उत्तिष्ठ गोविंद, उत्तिष्ठ गरुड़ ध्वज ।
उत्तिष्ठ कमला कांता, त्रैलोक्यम मंगलम कुरु ।

सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः।।
अर्थ : अचानक (आवेश में आकर बिना सोचे-समझे) कोई कार्य नहीं करना चाहिए, कयोंकि विवेकशून्यता सबसे बड़ी विपत्तियों का घर होती है। (इसके विपरीत) जो व्यक्ति सोच-समझकर कार्य करता है, गुणों से आकृष्ट होने वाली मां लक्ष्मी स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है।

भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा । के पञ्च निधयः ?
शीलं शौर्यमनालस्यं पाण्डित्यं मित्र पणसङ्ग्रहः ।
अचोरहरणीयानि पञ्चैतान्यक्षयो निधिः ।।
सुलक्षणं , वीरता , कार्येषु सक्रियता , बुद्धिमत्ता , मित्राणि च । एते पदार्थाः मनुष्यस्य जीवने कदापि समाप्ताः न भवन्ति , तान् च चोरः अपि न हरति , एते मनुष्यस्य अक्षयाः ( नाशरहिताः) भाण्डाररूपेण सन्ति ।

सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः।।
अर्थ : अचानक (आवेश में आकर बिना सोचे-समझे) कोई कार्य नहीं करना चाहिए, कयोंकि विवेकशून्यता सबसे बड़ी विपत्तियों का घर होती है। (इसके विपरीत) जो व्यक्ति सोच-समझकर कार्य करता है, गुणों से आकृष्ट होने वाली मां लक्ष्मी स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है।

प्रिय वाक्य प्रदानेन, सर्वे तुष्यन्ति जंतव:,
तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने क दरिद्रता?
મધુર ભાષા બોલવાથી બધાને પ્રસન્નતા મળે છે. તો પણ માણસ મીઠી ભાષામાં કેમ નહીં બોલતો હોય? જેમાં કોઈ વધારાનો ખર્ચ કરવો પડતો નથી, કે બીજું કોઈજ નુકસાન નથી.

असभ्दि: शपथेनोक्तं जले लिखितमक्षरम् ।
सभ्दिस्तु लीलया प्राोक्तं शिलालिखितमक्षरम् ॥
दुर्जनोने ली हुइ शपथ भी पानी के उपर लिखे हुए अक्षरों जैसे क्षणभंगूर ही होती है ।
परन्तू संतो जैसे व्यक्तिने सहज रूप से बोला हुआ वाक्य भी शिला के उपर लिखा हुआ जैसे रहता है ।

श्रमेण दु:खं यत्किन्चिकार्यकालेनुभूयते ।
कालेन स्मर्यमाणं तत् प्रामोद ॥
काम करते समय होनेवाले कष्ट के कारण थोडा दु:ख तो होता है ।
परन्तु भविष्य में उस काम का स्मरण हुवा तो निश्चित ही आनंद होता है ।


यावत् भ्रियेत जठरं तावत् सत्वं हि देहीनाम् ।
अधिकं योभिमन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति ॥
मनुस्मॄती, महाभारत अपने स्वयम के पोषण के लिए जितना धन आवश्यक है उतने पर ही अपना अधिकार है ।
यदि इससे अधिक पर हमने अपना अधिकार जमाया तो यह सामाजिक अपराध है तथा हम दण्ड के पात्र है ।

न कश्चिदपि जानाति किं कस्य श्वो भविष्यति अत: श्व: करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान ॥
कल किसका क्या होगा कोर्इ नहीं जानता , इसलिए बुद्धिमान लोग कल का काम आजही करते है ।

षड् दोषा: पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता,निंद्रा तन्द्रा भयं क्रोध: आलस्यं  दीर्घसूत्रता...
भावार्थ-- *किसी  व्यक्ति के बर्बाद होने के ६ लक्षण होते हैं.. नींद, गुस्सा, भय, तन्द्रा, आलस्य और काम को टालने या विलम्ब की आदत।।

आरोग्यं विद्वत्ता सज्जनमैत्री महाकुले जन्म ।
स्वाधीनता च पुंसां महदैश्वर्यं विनाप्यर्थे: ॥
आरोग्य, विद्वत्ता, सज्जनोंसे मैत्री, श्रेष्ठ कुल में जन्म, दुसरों के उपर निर्भर न होना यह सब धन नही होते हुए भी पुरूषों का एैश्वर्य है ।

प्रथमवयसि पीतं तोयमल्पं स्मरन्तः
शिरसि निहितभारा नारिकेला नराणाम्।
ददति जलमनल्पास्वादमाजीवितान्तं
न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति॥
भावार्थ :- नारळाचे झाड, हे लहान रोप असतांना त्याला घातलेल्या थोड्याशा पाण्याची आठवण ठेवते आणि त्या ऋणाचा भार स्वतःच्या माथ्यावर सहन करीत जन्मभर मनुष्याला मुबलक गोड पाणी देत राहते. त्याप्रमाणेच सज्जन लोक कधीही उपकार विसरत नाहीत.

हर्षस्थान सहस्राणि भयस्थान शतानि च ।
दिवसे दिवसे मूढं आविशन्ति न पंडितम् ॥
मूर्ख मनुष्य के लिए प्राति दिन हर्ष के सौ कारण होते है तथा दु:ख के लिए सहस्र कारण| परन्तु पंडितों के मन का संतुलन ऐसे छोटे कारणों से नही बिगडता|

नालसा: प्राप्नुवन्त्यर्थान न शठा न च मायिन: न च लोकरवाद्भीता न च शश्वत्प्रतीक्षिण:
आलसी मनुष्य कभीभी धन नही कमा सकता (वह अपने जीवनमे सफल नही हो सकता)| दुसरों की बुराई चाहने वाला तथा उनकी वंचना करने वाला, लोग क्या कहेंगे यह भय रखनेवाला, और अच्छे मौके के अपेक्षामे कॄतीहीन रहनेवाला भी धन नही कमा सकता।

दानं भोगो नाशस्य तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य | 
यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतीय गतिर्भवन्ति ||
ધન ખર્ચ કરવાના ત્રણ રસ્તા છે. દાન, ઉપભોગ અને નાશ.
જે માણસ દાન કે ઉપભોગ પણ કરતો નથી તેનું ધન નાશ પામે છે.

Tuesday, May 19, 2020

dipo Bhakshyate Dhvantam kajjalam cha prasuyate | Which food is good for us | Shloka & Reference in Bhagvad Gita.


दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते ।
यदन्नं भक्ष्यते नित्यं जायते तादृशी प्रजा ।।


શ્લોક નો અર્થ: સાત્વિક અને સારા ભોજન નું મહત્વ:
દીવો અંધારા નું ભક્ષણ કરે છે, તેથી કાળો ધુમાડો છોડે છે. તેવીજ રીતે આપણે રોજ જેવો ખોરાક લઈશું (સાત્વિક,રાજસી,તામસી) તેવાજ વિચારો આવશે।

दीपक अंधेरे का भक्षण करता है इसलिए काला धुंआ बनाता है उसी तरह हम जिस प्रकार का अन्न खातें है, (सात्विक, राजसी, तामसी)उसी तरह से विचार आतें है।    (वैचारिक सृष्टि वैसी ही बनती है ।)


સાત્વિક,રાજસી,તામસી ખોરાક કોને કહેવો તે શ્રીમદ્દ ભગવદ્દ ગીતા માં ભગવાને સ્તરમાં(A-17) અધ્યાય : શ્રદ્ધાત્રય વિભાગ યોગ : માં વિસ્તૃત સમજણ આપેલી છે.
आयुः सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः ।
रस्याःस्निग्धाःस्थिरा हृद्या आहाराःसात्त्विकप्रियाः(८)

भावार्थ : जो भोजन आयु को बढाने वाले, मन, बुद्धि को शुद्ध करने वाले, शरीर को स्वस्थ कर शक्ति देने वाले, सुख और संतोष को प्रदान करने वाले, रसयुक्त चिकना और मन को स्थिर रखने वाले तथा हृदय को भाने वाले होते हैं, ऐसे भोजन सतोगुणी मनुष्यों को प्रिय होते हैं। (८)
कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः ।

आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः ॥ (९)

भावार्थ : कड़वे, खट्टे, नमकीन, अत्यधिक गरम, चटपटे, रूखे, जलन उत्पन्न करने वाले भोजन रजोगुणी मनुष्यों को रुचिकर होते हैं, जो कि दुःख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाले होते हैं। (९)
यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्‌ ।
उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्‌ ॥ (१०)

भावार्थ : जो भोजन अधिक समय का रखा हुआ, स्वादहीन, दुर्गन्धयुक्त, सड़ा हुआ, अन्य के द्वारा झूठा किया हुआ और अपवित्र होता है, वह भोजन तमोगुणी मनुष्यों को प्रिय होता है। (१०)

Sunday, May 17, 2020

Ashvasya Bhushanam Vego | Mattamsyad gaj bhushanam

अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद् गजभूषणम् ।
चातुर्यं भूषणं नार्या उद्योगो नर भूषणम् ।
ઘોડા નું ઘરેણું છે ઝડપ, મસ્ત ચાલ હાથી નું ઘરેણું છે, ચાર્તુર્યતા નારી નું ઘરેણું છે, ઉદ્યોગ માં લાગેલા રહેવું એ પુરુષ નું આભૂષણ છે.
तेज चाल घोड़े का अभूषण है, मत्त चाल हाथी का अभूषण है, चातुर्य नारी का अभूषण है और  उद्योग मे लगे रहना पुरुष का अभूषण है

Friday, May 15, 2020

Kulsyarthe Tyajedekam | Gramsyarthe Kulam Tyajet |

कुलस्यार्थे त्यजेदेकम् ग्राम्स्यार्थे कुलंज्येत्।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्॥

કુળ (કુટુંબ) માટે સ્વયં નો સ્વાર્થ ત્યાગ કરવો જોઈએ। ગામ માટે કુળ ના સ્વાર્થ નો ત્યાગ કરવો, જનપદ (દેશ) માટે ગામ ના સ્વાર્થ નો ત્યાગ કરવો જોઈએ, આત્મા માટે બધાંનો ત્યાગ કરો।

कुटुम्ब के लिए स्वयं के स्वार्थ का त्याग करना चाहिए, गाँव के लिए कुटुम्ब का त्याग करना चाहिए, देश के लिए गाँव का त्याग करना चाहिए और आत्मा के लिए समस्त वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।

Tuesday, May 12, 2020

Yojaks Tatra Durlabham

अमंत्रं   अक्षरं    नास्ति, नास्ति   मूलं   अनौषधः ।
अयोग्यः पुरूषः नास्ति, योजकः   तत्र    दुर्लभः ॥

એવો કોઈ અક્ષર નથી જેનાથી કોઈ મંત્ર શરુ ના થતો હોય,
એવું કોઈ મૂળ નથી જે કોઈ રોગ ની ઔષધિ ના હોય,
કોઈ પણ કામ ન આવી શકે એવો કોઈ મનુષ્ય નથી,
આ બધાં નો આયોજક જ દુર્લભ છે.

संसार में कोई ऐसा अक्षर नहीं है जिससे कोई मंत्र न शुरू होता हो।  कोई ऐसा मूल (जड़) नहीं जो किसी रोग की औषधि नहीं है, तथा दुनिया में कोई भी व्यक्ति पूर्णतः अयोग्य नहीं है जो किसी काम न आ सके।  किन्तु उक्त तीनों का (मंत्र, औषधि और व्यक्ति का) समुचित प्रयोग करने वाले योजक कठिनता से मिलते हैं।

Sunday, May 10, 2020

Happy Mother's Day Some Shlok for Mother

यु: पुमान् यश: स्वर्ग कीर्ति पुण्यं बलं श्रियं ।
पशु सुखं धनं धान्यं प्राप्नुयान्मातृ वन्दनात् ।।


શ્લોક નો અર્થ : તેને યશ, સ્વર્ગ, કીર્તિ, પુણ્ય, બળ, શ્રેય, પશુ, સુખ, ધન, અનાજ  એ બધુજ મળે છે, જે માતાની દીલ થી સેવા કરે છે.

A man who serve mother truthfully will be blessed with long life, success, heaven, fame, Laxmi, wealth, cattle, food grain, and everything.

आस्तां तावदियं प्रसूतिसमये दुर्वारशूलव्यथा
नैरुच्यं तनुशोषणं मलमयी शय्या च सांवत्सरी ।
एकस्यापि न गर्भभार भरण क्लेशस्य यस्याः क्षमो
दातुं निष्कृतिमुन्नतोऽपि तनयः तस्यैः जनन्यै नमः ।।

-मातृपञ्चकम्
શ્લોક નો અર્થ : પ્રસુતિ સમયે શૂળવ્યથા - સહન કરાયેલી આત્યંતિક પીડા, સ્વાદિષ્ટ ભોજન માટેની અરુચિ અને  ગર્ભાવસ્થા દરમિયાન શરીરના પરિણમેલા સ્ત્રાવ, પ્રસુતિ પછી આખા વર્ષ દરમ્યાન બાળક દ્વારા ગંદી કરાયેલી શય્યા, આ બધું જવા દો, આખું વર્ષ બાળક નું ગર્ભ ધારણ કરી તેનું વજન વહન કરે છે, સહન કરે છે. આ બધાં નું વળતર ખુબ મોટો મહાન અને કીર્તિમાન પુત્ર પણ કદી આપી શકતો નથી.આવી માતા ને મારા વંદન.

Meaning : The acute irrepressible pain endured by the mother at the time of delivery, the distaste towards food and the resulting emaciation of the body during pregnancy, the year-long period after delivery, during which the bed was dirtied by the baby – let all these be. But the suffering that the mother endures in carrying the weight of the foetus throughout pregnancy, can never be compensated the least by a son, even if he is great and famous. Salutations to that mother.
नास्ति मातृ समा छाया नास्ति मातृ समा गति:।
नास्ति मातृसमं त्राण नास्ति मातृसमा प्रिया ।।

શ્લોક નો અર્થ : માતા સમાન કોઈ છાંયડો નથી, માતા સમાન કોઈ સહારો કે ગતિ નથી, માતા સમાન કોઈ રક્ષક નથી, અને માતા સમાન કોઈ પ્રિયજન નથી.
अर्थात : माता के समान कोई छाया नहीं, माता के समान कोई सहारा नहीं. माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय चीज नहीं।

"માં તે માં બીજા બધા વન વગડા ના વા"
"મોસાળ માં જમવાનું ને માં પીરસનારી"


Saturday, May 9, 2020

Happy Birthday to You



जन्मदिनशुभेच्छाः जन्मदिनशुभेच्छाः
स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु |
विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ||
ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु |
वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ||

आप सदैव आनंद से, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें | विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें | ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे| आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे।
कुर्यात् सदा मंगलम् | दीर्घायुरारोग्यमस्तु | सुयशः भवतु | विजयः भवतु
जन्मदिनशुभेच्छाः
शुभ तव जन्म दिवस सर्व मंगलम्
जय जय जय तव सिद्ध साधनम्
सुख शान्ति समृद्धि चिर जीवनम्
शुभ तव जन्म दिवस सर्व मंगलम्

प्रार्थयामहे भव शतायु: ईश्वर सदा त्वाम् च रक्षतु।
पुण्य कर्मणा कीर्तिमार्जय जीवनम् तव भवतु सार्थकम् ।।

ईश्वर सदैव आपकी रक्षा करे
समाजोपयोगी कार्यों से यश प्राप्त करे
आपका जीवन सबके लिए कल्याणकारी हो
हम आपके लिए यही प्रार्थना करते हैं

Wednesday, May 6, 2020

Why we Can't See GOD Answer in Indian Philosophy Sankhya Darshan

ક્યાં છે તમારો ભગવાન?
भगवान है तो दिखाई क्यों नहीं देते? ये प्रश्न बहुत ही कॉमन है.
All Details About Sankhya Karika & Shloka Chanting Video
વાત વાત માં આપણે વિવાદ કરીયે છીએ અને કહીયે કે ક્યાં છે તમારો ભગવાન? જો હોય તો દેખાતો કેમ નથી? સ્વામી વિવેકાનંદ પણ ભગવાન ની શોધ માં બવ ફર્યા પછી તેમને સ્વામી રામકૃષ્ણ પરમહંસ જેવા ગુરુ મળ્યા તેમને પણ આજ પ્રશ્ન પૂછ્યો। જો ભગવાન હોય તો મારી મુલાકાત કરવો।
આ બધા પ્રશ્નો નો જવાબ ભારતીય ફિલસૂફી માં સાંખ્ય દર્શન માં વર્ષો પહેલા આપેલો છે જે સમજીને તમે પણ કહેશો કે વાત સાચી છે. ભગવાન મને દેખાતો નથી તેના વ્યાજબી કારણો બુદ્ધિ માં ઉતરે તેવી રીતે આ શ્લોક માં સમજાવ્યા છે. ચાલો આપણે તેને સમજીયે।
अतिदूरात्सामीप्यादिन्द्रियघातान् मनोऽनवस्थानात् ।
सौक्ष्म्याद्व्यवधानादभिभवात् समानाभिहारच्च॥ ७॥
सांख्य कारिका 
શ્લોક નો અર્થ :
1. અતિદૂર - ખુબજ દૂર હોય તેવો નાયગરા નો ધોધ આપણે નરી આંખે જોઈ શકતા નથી એનો મતલબ એ નથી કે તે ધોધ ત્યાં નથી.
2. અતિનજીક - આંખ ની એકદમ નજીક કોઈ વસ્તુ લાવી દેવાથી આપણે તેને જોઈ શકતા નથી.
3. ઇન્દ્રિય ઘાત - ઇન્દ્રિય(આંખ) માં ઘાત થયો હોય કે કોઈ તકલીફ હોય કે આંધળો મનુષ્ય હોય તેને આજુ બાજુ ની વસ્તુ દેખાતી નથી એનો મતલબ એ નથી કે તેની આજુબાજુ કંઈ છે નઈ.
4. મનોનવસ્થાનાત - મન બીજી કોઈ જગ્યાએ હોય તો સામે રહેલું પણ દેખાતું નથી આપણે ઘણી વાર જીવલેણ અકસિડેન્ટ પણ કરી બેસીયે છીએ કારણકે આપણું ધ્યાન ક્યાંક બીજે હોય સામે વાળું વાહન આપણે જોઈ શકતા નથી અથવા જયારે ખબર પડે છે ત્યારે મોડું થઇ ગયું હોય છે, ભણતી વખતે વિદ્યાર્થી પણ બેધ્યાન થઇ જાય તો ગુરુ એ શું ભણાવ્યું તે ખબર પડતી નથી.
5. સૌક્ષમયાત - ખુબજ સૂક્ષ્મ હોય (દા.ત. કોરોના વાયરસ), હવે વાયરસ દેખાતો નથી એનો મતલબ એ નથી કે તે નથી. આ વાત તો હવે બધા ને તરતજ સમજ પડી જાય એમ છે.
6. વ્યવધાનાત - વચ્ચે કંઈ વ્યવધાન હોય (દા.ત. દીવાલ પાછળ નું આપણે જોઈ શકતા નથી.)
7. અભીભવ - અસંભવ હોય તેવું જેમકે ગિનિસ બુક ઓફ વર્લ્ડ રેકોર્ડ્સ માં જે બતાવે છે તે બધું સાચું હોય છે પણ આપણા માટે તે અસંભવ જેવું છે એનો મતલબ એ નથી કે તે ઘટના કે કાર્ય થયું નથી
8. સમાનાભીહારશ્ચ - બે સમાન વસ્તુ હોય. દા.ત. બે જોડિયા બાળકો હોય તો ઘણીવાર ગડમથલ થઇ જાય છે, આજ ના જમાના માં સરખી દેખાતી વેબસાઇટ માં આપણે કોઈવાર ફ્રાઉડ માણસ ને પણ પેમેન્ટ કરી દઈએ છીએ અને છેતરાઇયે છીએ. જે ફ્રાઉડ ને આપણે સરખી વેબસાઈટ હોવાથી ઓળખી શક્યા નહીં એનો મતલબ એ નથી કે એ નથી.
આટલા કારણો થી આપણે આપણી આજુ બાજુ ની વસ્તુ જોઈ શકતા નથી તેનો મતલબ એ નથી કે એ વસ્તુઓ નથી. તો પછી ભગવાન માટે આવો આગ્રહ કેમ?

Vidhya Vivaday Dhanam Maday Shakti

विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय।
खलस्य साधोः विपरीतमेतद् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय॥


શ્લોક નો અર્થ : વિદ્યા, ધન અને શક્તિ જો એક દુર્જન પાસે હોય તો તે તેને વિવાદી, અહંકારી અને અત્યાચારી બનાવે છે. તેજ જો એક સજ્જન પાસે હોય તો તેનાથી વિપરીત તે તેને જ્ઞાની, દાની અને રક્ષક બનાવે છે.

विद्या, धन और शक्ति जहाँ एक खल (दुर्जन) को विवादी, अहंकारी और अत्याचारी बनाते हैं वहीं वे एक साधु (सज्जन) को ज्ञानी, दानी और रक्षक बनाते हैं।

Tuesday, May 5, 2020

શ્રી રામચંદ્ર કૃપાળુ ભજમન

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणम्॥

શ્રી રામચંદ્ર કૃપાળુ ભજમન હરણ ભવભય દારૂણમ ।

મહાકવિ ગોસ્વામી તુલસીદાસ દ્વારા સોળમી સદીમાં રચાયેલી આરતી ભગવાન રામ ની સ્તુતિ માટે । 

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणम्॥
कंदर्प अगणित अमित छबि, नव नील नीरज सुन्दरम्।
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची, नौमि जनक सुतावरम्॥
भज दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द दशरथ नन्दनम्॥
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु, उदारु अङ्ग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चापधर सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम्॥
इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम हृदयकंज निवास कुरु, कामादि खलदल गंजनम्॥

 
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
श्रीराम श्रीराम
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन – हे मन, कृपालु (कृपा करनेवाले, दया करनेवाले) भगवान श्रीरामचंद्रजी का भजन कर हरण भवभय दारुणम्। – वे संसार के जन्म-मरण रूप दारुण भय को दूर करने वाले है – दारुण: कठोर, भीषण, घोर (frightful, terrible) नवकंज-लोचन – उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है कंज-मुख – मुख कमल के समान हैं कर-कंज – हाथ (कर) कमल के समान हैं पद-कंजारुणम्॥ – चरण (पद) भी कमल के समान हैं
कंदर्प अगणित अमित छबि, नव नील नीरज सुन्दरम्।
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची, नौमि जनक सुतावरम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
श्रीराम श्रीराम
कंदर्प अगणित अमित छबि – उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित (असंख्य, अनगिनत) कामदेवो से बढ़कर है नव नील नीरज सुन्दरम् – उनका नवीन नील नीरज (कमल, सजल मेघ) जैसा सुंदर वर्ण है पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची – पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है नौमि जनक सुतावरम् – ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हूँ

भज दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द दशरथ नन्दनम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
श्रीराम श्रीराम
भजु दीन बन्धु दिनेश – हे मन, दीनो के बंधू, सुर्य के समान तेजस्वी दानव दैत्यवंश निकन्दनम् – दानव और दैत्यो के वंश का नाश करने वाले रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द – आनन्दकंद, कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान  दशरथ नन्दनम् – दशरथनंदन श्रीराम (रघुनन्द) का भजन कर
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु, उदारु अङ्ग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चापधर सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
श्रीराम श्रीराम     
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु – जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानो मे कुण्डल, मस्तक पर तिलक और उदारु अङ्ग विभूषणम् – प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है आजानुभुज – जिनकी भुजाए घुटनो तक लम्बी है और शर चापधर – जो धनुष-बाण लिये हुए है. सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम् – जिन्होने संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है

इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम हृदयकंज निवास कुरु, कामादि खलदल गंजनम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणम्॥
श्रीराम श्रीराम
इति वदति तुलसीदास – तुलसीदासजी प्रार्थना करते है कि शंकर शेष मुनि मन रंजनम् – शिव, शेष और मुनियो के मन को प्रसन्न करने वाले मम हृदयकंज निवास कुरु – रघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल मे सदा निवास करे जो कामादि खलदल गंजनम् – कामादि (काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह) शत्रुओ का नाश करने वाले है
-an aarti written by Goswami Tulsidas |  in the sixteenth century | 

॥ Shriramachandra Kripalu॥
Śrīrāmacandra kr̥pālu bhajamanaharaṇa bhavabhayadāruṇaṁ.
Navakañjalocana kañjamukha karakañja padakañjāruṇaṁ. ।।1।।
Kandarpa agaṇita amita chavi navanīlanīradasundaraṁ.
Paṭapītamānahu taḍita ruciśuci naumijanakasutāvaraṁ. ।।2।।
Bhajadīnabandhu dinēśa dānavadaityavaṁśanikandanaṁ.
Raghunanda ānandakanda kośalachandra daśarathanandanaṁ. ।।3।।
Śiramukuṭakuṇḍala tilakacāru udāru'aṅgavibhūṣaṇaṁ.
Ājānubhuja śaracāpadhara saṅgrāmajitakharadūṣaṇaṁ. ।।4।।
Iti vadati tulasīdāsa śaṅkaraśeṣamunimanarañjanaṁ.
Mamahr̥dayakañjanivāsakuru kāmādikhaladalagañajanaṁ. ।।5।।

Monday, May 4, 2020

Morning Subhashit

श्रमेण लभ्यं सकलं न श्रमेण विना क्वचित् ।
सरलाङ्गुलि संघर्षात् न निर्याति घनं घृतम् ॥

શ્લોક નો અર્થ। પરિશ્રમ । શરીર દ્વારા મનપૂર્વક કરેલું કામ પરિશ્રમ કહેવાય છે. પરિશ્રમ વગર જીવન ની સાર્થકતા નથી. પરિશ્રમ વગર વિદ્યા કે ધન પણ મળતા નથી. પરિશ્રમ વગર ખાધેલું ભોજન પણ સ્વાદ લાગતું નથી.
शरीर के द्वारा मनपूर्वक किया गया कार्य परिश्रम कहलाता है । परिश्रम के बिना जीवन की सार्थकता नहीं है  परिश्रम के बिना न विद्या मिलती है और न धन। परिश्रम के बिना खाया गया भोजन भी स्वादहीन होता है। अतः हमें सदैव परिश्रम करना चाहिए। परिश्रम से ही कोई देश, समाज और परिवार उन्नति करता है।

Atmartham Jivlokesmin Ko na Jivati Manava

आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन् को न जीवति मानवः।
परं परोपकारार्थं  यो जीवति स जीवति ।।
 પરોપકાર નું મહત્વ : શ્લોક નો અર્થ: પોતાના માટે તો આ સંસાર માં બધા જીવન જીવે છે. પરંતુ જે પરોપકાર માટે જીવન જીવે છે,તેનુંજ જીવન સાર્થક છે.
स्वयं के लिए इस संसार में सब लोग जीवन व्यतीत कर रहे हैं,किन्तु जो परोपकार के लिए जीवन जीते है वही सार्थक जीवन है ।परोपकार का महत्व दर्शाता है ।

Shubhashitani

आशाया:किरणा:स्युर्वा सूर्यनारायणस्य च। जीवनतिमिरं गाढं नाशयन्ति न संशय:।। આશા ના કિરણો હોય કે પછી ભગવાન સૂર્યનારાયણ ના હોય પણ જીવનના ગાઢ અંધ...