दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते ।
यदन्नं भक्ष्यते नित्यं जायते तादृशी प्रजा ।।
શ્લોક નો અર્થ: સાત્વિક અને સારા ભોજન નું મહત્વ:
દીવો અંધારા નું ભક્ષણ કરે છે, તેથી કાળો ધુમાડો છોડે છે. તેવીજ રીતે આપણે રોજ જેવો ખોરાક લઈશું (સાત્વિક,રાજસી,તામસી) તેવાજ વિચારો આવશે।
दीपक अंधेरे का भक्षण करता है इसलिए काला धुंआ बनाता है उसी तरह हम जिस प्रकार का अन्न खातें है, (सात्विक, राजसी, तामसी)उसी तरह से विचार आतें है। (वैचारिक सृष्टि वैसी ही बनती है ।)
यदन्नं भक्ष्यते नित्यं जायते तादृशी प्रजा ।।
શ્લોક નો અર્થ: સાત્વિક અને સારા ભોજન નું મહત્વ:
દીવો અંધારા નું ભક્ષણ કરે છે, તેથી કાળો ધુમાડો છોડે છે. તેવીજ રીતે આપણે રોજ જેવો ખોરાક લઈશું (સાત્વિક,રાજસી,તામસી) તેવાજ વિચારો આવશે।
दीपक अंधेरे का भक्षण करता है इसलिए काला धुंआ बनाता है उसी तरह हम जिस प्रकार का अन्न खातें है, (सात्विक, राजसी, तामसी)उसी तरह से विचार आतें है। (वैचारिक सृष्टि वैसी ही बनती है ।)
સાત્વિક,રાજસી,તામસી ખોરાક કોને કહેવો તે શ્રીમદ્દ ભગવદ્દ ગીતા માં ભગવાને સ્તરમાં(A-17) અધ્યાય : શ્રદ્ધાત્રય વિભાગ યોગ : માં વિસ્તૃત સમજણ આપેલી છે.
आयुः सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः ।
रस्याःस्निग्धाःस्थिरा हृद्या आहाराःसात्त्विकप्रियाः(८)
भावार्थ : जो भोजन आयु को बढाने वाले, मन, बुद्धि को शुद्ध करने वाले, शरीर को स्वस्थ कर शक्ति देने वाले, सुख और संतोष को प्रदान करने वाले, रसयुक्त चिकना और मन को स्थिर रखने वाले तथा हृदय को भाने वाले होते हैं, ऐसे भोजन सतोगुणी मनुष्यों को प्रिय होते हैं। (८)
कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः ।
आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः ॥ (९)
भावार्थ : कड़वे, खट्टे, नमकीन, अत्यधिक गरम, चटपटे, रूखे, जलन उत्पन्न करने वाले भोजन रजोगुणी मनुष्यों को रुचिकर होते हैं, जो कि दुःख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाले होते हैं। (९)
यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत् ।
उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम् ॥ (१०)
भावार्थ : जो भोजन अधिक समय का रखा हुआ, स्वादहीन, दुर्गन्धयुक्त, सड़ा हुआ, अन्य के द्वारा झूठा किया हुआ और अपवित्र होता है, वह भोजन तमोगुणी मनुष्यों को प्रिय होता है। (१०)
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